पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्रसागर सूरीश्वर जी म.सा.

कोयल की मीठी चहक समान

पू. आ. श्री जिनचंद्रसागर सूरीश्वर जी म.सा.

गायनकला में निपूण
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बंधु बेलड़ी में बड़े भाई पू. आ. श्री जिनचंद्रसागरसूरि महाराज बचपन से ही सुरीले कंठ के स्वामी थे। वह स्वयं जब गाते तो मन्दिर सैकड़ों भक्तो से भर जाता था। पूज्यश्री संगीत और गायनकला के अत्यंत शौकीन थे। उनका संगीत क्षेत्र अध्यात्म से संकलित रहा।

सुप्रसिद्ध संगीतकारों पं. भीमसेन जोशी, गजानन ठाकुर और पं. मोहनलाल जी जैसे संगीतकार जब स्वयं की गायन कला को प्रस्तुत करने के बाद पूज्यश्री को सुनते तो सहसा ही उनकी गायकी पर सभी मोहित हो जाते।

ऐसे पू. आ.श्री. जिनचंद्रसागरसूरी जब सिद्धाचल या शत्रुंजय तीर्थ जैसी पुण्य तीर्थभूमि में अपने स्वर में समूह भक्ति कराते थे, तब श्रोताओं के लिए भक्ति उत्सव हो जाता था और सभी भक्ति में डूब जाते थे।

यह भी एक विशिष्ट संयोग रहा कि आजीवन सुर और संगीत की भक्तिधारा बहाने वाले पूज्यश्री का जिस दिन कालधर्म हुआ उस दिन प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री आदिनाथ की केवलज्ञान कल्याणक महावद एकादशी थी।

रात्रि में उन्होंने अपने मधुर कंठ से मन्त्रमुग्ध कर देने वाली स्तुति और स्तवन सुनाये और उसी सुर आराधना में समाधि को प्राप्त हुए।

परस्पर स्नेहधारा
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आचार्यद्वय का पारस्परिक स्नेहभाव देखते ही बनता… तब हमें सहसा ही राम लक्षमण जी की जोड़ी याद आ जाती। दोनों आचार्यश्री की स्नेहधारा स्वयं से वडील पूज्यों के प्रति भक्ति के रूप में और आश्रितगण के प्रति वात्सल्य के रूप में निरंतर याद आती है।

ऐतिहासिक सत्प्रेरणाएं
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पूज्यश्री की निश्रा में सैकड़ों प्रतिष्ठाएं, अंजनशलाका, दीक्षा महोत्सव, उपधान तप आराधना और श्री नवकार महामंत्र साधन जैसे हजारों अनुष्ठान अत्यंत भव्यता से सम्पन्न हुए हैं।

इसके साथ ही श्री अयोध्यापुरम महातीर्थ जि. वल्लभीपुर, श्री सुमेरुनवकार तीर्थ जि. वडोदरा जैसे महान स्थापत्यकला संपन्न तीर्थ तथा सुरत से समेदशिखरजी का 140 दिवसीय छ'रि पालक महासंघ और चैन्नई से शत्रुंजय का 136 दिवसीय छ'रि पालक महासंघ जैसे ऐतिहासिक प्रसंग पूज्यश्री की निश्रा में संपन्न होकर नये इतिहास रच चुके हैं।

इन सभी में पूज्यश्री की सात्विकता, साहसिकता, सरलता, सत्प्रेरणा, उत्तम बुद्धिमता और विशिष्ट कुशलता आदि गुणों के जैन श्रीसंघ को दर्शन हुए है।

समाधि तीर्थ
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अयोध्यापुरम तीर्थ प्रेरक एवं मार्गदर्शक बंधु बेलड़ी पूज्य आचार्य देवेश श्री जिनचन्द्रसागरसूरीश्वर जी म.सा. इस पावन पुण्य धरा पर महावद 11- बुधवार 7 मार्च 2024 की मध्य रात्रि 1: 11 बजे कालधर्म को प्राप्त हुए।

उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार पार्थिव देह को समाधि तीर्थ परिसर में ही दी गई, जिसका लोकार्पण 6 अप्रैल 24 को पूज्यश्री के प्रथम मासिक पुण्य स्मरण के अवसर पर आयोजित सदगुरु सदगुण संकीर्तन महोत्सव प्रसंग पर पू.आ.श्री अशोकसागरसूरीश्वर जी म.सा. की पावन निश्रा एवं विभिन गच्छ-समुदाय के आचार्यश्री, साधु- साध्वीजी एवं देशभर से आये श्रीसंघ प्रतिनिधि एवं हजारों समाजजनों की भावपूर्ण उपस्थिति में हुआ था।

अयोध्यापुरम में देश विदेश से आने वाले भक्तजन यहाँ अपने श्रध्दासुमन अर्पित कर पूज्यश्री का पावन स्मरण करते हैं।

प्रतिमाह वद एकादशी को यंहा पुष्पांजली सभा का आयोजन किया जाता है। निकट भविष्य में समाधि तीर्थ को भव्य स्वरूप दिया जाने की कार्ययोजना है।

पू. आ. श्री जिनचंद्रसागर सूरीश्वर जी म.सा.
के श्री चरणों में कोटिश: वंदन

बंधु बेलड़ी का विस्तृत परिचय जानें

पू. आ. श्री हेमचंद्रसागर सूरीश्वर जी म.सा.

बंधु बेलड़ी