प्रतिष्ठा इतिहास

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अयोध्यापुरम तीर्थ का प्रमुख आकर्षण है 108 किलो वजनी रजत मुकुट से सुसज्जित दादा आदिनाथ जी की असाधारण शक्तियों से भरपूर भव्य 23 फिट की प्रतिमाजी।

इस प्रतिमा के लिए जयपुर से 70 किमी दूर जीरी खदान में से शिला प्राप्त हुई। इसी शिला को यहां लाकर दादा आदिनाथ जी की प्रतिमा का निर्माण किया गया।

68 दिन का इंतजार... प्रतिमाजी का प्रकटीकरण
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इस पवित्र शिला को जयपुर के निकट से अयोध्यापुरम तक परिवहन कर लाने का इतिहास भी बड़ा ही रोचक और जानने योग्य है।

जीरी खदान में से पवित्र शिला के अधिक भाग की कटिंग होने के बाद उसका वजन 300 टन था, जिसमे में से प्रतिमाजी के प्रकट होने के बाद अभी इसका वजन 250 टन है। इस शिला को खदान में से जमीन पर लाने में 68 दिन का समय लग गया।

इस कार्य के लिए नासिक के 22 बहादुरों ने अथक पसीना बहाया। तत्पश्चात चैत्र सुदी 13 यानि प्रभुवीर जन्मकल्याणक के दिन पवित्र शिला जमीन पर पहुंची। ये भी एक अद्भुत प्रसंग और अद्वितीय संयोग ही था।

150 पहिये के ट्राले का कारवां
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अब इसे अयोध्यापुरम तक पहुंचाना बड़ी चुनोती थी, लेकिन परमात्मा के कार्य में परमात्मा की ही प्रेरणा और शक्ति कार्य करती है। पवित्र शिला को यहां तीर्थ तक लाने में, अनगिनत लोगों को इस सत्य की अनुभूति हुई।

कोई 150 टायर के ट्राले पर इस विशालकाय वजनी शिला को चढ़ाकर अयोध्यापुरम पहुंचाने के लिए एक ऐतिहसिक कारवां निकल पड़ा।

इस लम्बे रास्ते में 19 पुल रिपेयर करने पड़े तथा 3 मकान जिसमें एक मुस्लिम भाई का भी था तथा एक हनुमानजी जी के मन्दिर के हिस्से को तोड़ना पड़ा। इन चारों में से किसी ने भी रिपेयरिंग का मुआवजा नहीं लिया!! इतना ही नहीं रेलवे के चार फाटक भी तोड़ने पड़े लेकिन कहीं कोई समस्या नहीं आई।

जैसे जैसे पवित्र शिला आगे बढ़ती गई, वैसे वैसे मार्ग प्रशस्त होता गया। दादा आदिनाथ जी की प्रतिमा के लिए मानो सभी लोग, शासन- प्रशासन सहयोग करने के लिए तैयार खड़े थे।

डगर डगर… नगर नगर… स्वागत… सत्कार…
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मार्ग में जिसे भी खबर मिली की ऐतिहासिक प्रतिमा जी के लिए शिला अपने गाँव और शहर सी गुजर रही है तो डगर डगर और नगर नगर इसका भव्य स्वागत, सत्कार, अभिषेक और पूजन हुआ।

वि.सं.2055 श्रावण विदी 8 के दिन अयोध्यापुरम में कोई दस हजार लोगों के विशाल जन सैलाब की उपस्थिति में विधिविधान और अनुपम ठाट बाट से पवित्र शिला जी का तीर्थ परिसर में उत्साह उमंग से प्रवेश हुआ।

36 महीने में प्रकट हुए प्रभुजी
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वि. सं.2056 महासुदी ५०० के मंगल दिन पवासन पर शिला की स्थापना की गई और उसी दिन शिला में से प्रभुजी को प्रगट करने का शुभ कार्य प्रारम्भ हुआ।

साथ साथ नवकार कुटीर में नवकार महामंत्र के अखंड जाप का शुभारंभ भी हुआ।

उसी दिन गुजरात सरकार के अनेक मंत्री, विशिष्टजन, श्रावक श्राविकाएं के साथ हजार से अधिक लोग एकत्र हुए। उस दिन से छाणी संघ की तरफ से अयोध्यापुरम से शत्रुंजय गिरिराज का छ'रि पालक संघ निकालने के शुभ शगुन दिए गए।

कोई 36 महीने तक दिन रात चले इस कार्य के बाद पवित्र शिला में से सुंदर मनोहर भव्य 23 फुट के दादा आदिनाथ प्रकट हुए। जिनके दर्शन,पूजन और वन्दन के लिए हजारों हजार का ताँता यहां हर दिन तडके से लेकर रात्रि तक लगा रहता है।

दादा आदिनाथ जी की पावन मंगलकारी, कल्याणकारी और सर्वहितकारी निश्रा ने अयोध्यापुरम को तीर्थ का स्वरूप दे दिया है।

पलिताना आने जाने वाले धर्मावलम्बियों के लिए जब तक दादा आदिनाथ जी, अयोध्यापुरम के दर्शन नहीं होते हैं, वे तब तक अपनी यात्रा को अधुरा मानते हैं।

“संसार के संबंधों में मशगूल होकर, संसार के स्वामी
को भूल न जाना।”

प्रतिमा जी के प्रकटीकरण की झांकी