

गुरुदेव परिचय


पूज्य श्री सागरानन्द सूरीश्वर जी म. सा.
पूज्यश्री के आधार व आदर्श पूज्यगुरूदेव श्री आगमोध्धारक, आगम मन्दिर प्रणेता, आगम मुद्रण प्रवर्तक, शासन, समाचारी संरक्षक
पू. आगमोध्धारक श्री की શ્રુંखलाबद्ध आगम वाचनाएँ
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7 वाचनाओं में 2 लाख 32 हजार श्लोक प्रमाण वाचना हुई
- विक्रम संवत 1971 - अहमदाबाद
- विक्रम संवत 1972 कपडवंज
- विक्रम संवत 1972 - अहमदाबाद
- विक्रम संवत 1973 सूरत
- विक्रम संवत 1973 सूरत
- विक्रम संवत 1973 पालीताणा
- विक्रम संवत 1977 रतलाम
श्रुतोउपासना साहित्य सर्जन
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- 187 प्रान्तों और पुस्तकों द्वारा कुल 8,24,457 श्लोक प्रमाण आगम तथा अन्य शास्त्रों का सम्पादन तथा मुद्रण कार्य
- 83 ग्रन्थों का मननीय प्रस्तावना का लेखन कार्य
- आगम साहित्य का विषयों में वर्गीकरण
- संस्कृत प्राकृत भाषा में 66, 562 श्लोक प्रमाण शास्त्रीय ग्रन्थों की रचना
- इसके अलावा गुजराती साहित्य भी बड़ी संख्या में उपलब्ध है तथा स्वयं लेखन से अति प्रसिद्ध "सिद्धचक्र" मासिक पत्रिका का अनवरत प्रकाशन
- विविध संघो में पुस्तकालय- ज्ञान भंडारों की स्थापना
जीवन गगन के तेजस्वी सितारे
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- वि.सं. 1950 पाली (राजस्थान) में ठाणाग सूत्र आधारित प्रवचन
- वि.सं. 1952, 2004 में शास्त्र और परम्परा के आधार पर श्री संघ को शुध्य मान्यतानुसार संवत्सरी महापर्व की आराधना करवाई
- वि.सं. 1958 पाटन में "दुष्काल राहत फंड" करवाया
- वि.सं. 1974 सूरत श्री संघ की एकता
- वि.सं. 1977 सैलाना(मप्र) नरेश प्रतिबोधन तथा अमारी प्रवर्तन
- वि.सं. 1979 सेमलिया(मप्र) पंचेड के ठाकुर को प्रतिबोध
- वि.सं. 1982 पोरवाड संघ का सादड़ी(राज) नगर में समाधान
- वि.सं. 1990 मुनि संमेलन के सूत्रधार
- वि.सं. 1990 पंजाब में निराश्रितों के लिए राहत फंड
- महासंघ तथा 7 उपधान तप का आयोजन
विविध संस्थाओं की स्थापना
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- विविध 25 संस्थाओं की स्थापना व तीर्थरक्षक और तीर्थ उद्धारक
- वि.सं. 1964 में सम्मेतशिखरजी तीर्थ पर अंग्रेजों के द्वारा बनने वाले बंगले का कार्य रुकवाया, सम्मेतशिखरजी तीर्थ को खरीदवाकर श्वेताम्बर श्रीसंघ की मालिकी का करवाया
- विक्रम संवत 1965 में अन्तरिक्ष जी तीर्थ का केस दिगम्बरों के सामने जीता
- विक्रम संवत 1979 में भोपावर मक्षी जी मांडवगढ़ (मप्र) तीर्थ का जीर्णोद्धार एवं स्टेट के साथ समाधान करवाया
- विक्रम संवत 1983 में केशरिया जी तीर्थ में ध्वजा दंड की एवं तारंगा जी तीर्थ में प्रभु की चरण पादुका की प्रतिष्ठा करवाई
- विक्रम संवत 1985 में शत्रुंजय महातीर्थ की रक्षा हेतु लाखों रूपये का फंड करवाया
- श्री चारूप तीर्थ के जिनालय की सीमा में रहे हुए शिवलिंग को अन्यत्र सुरक्षित रखवाया
संयम जीवन के मन्दिर पर समाधि मृत्यु की ध्वजा
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- विक्रम संवत 2006 वैशाख सुदी 5 को दोपहर 3 बजे से जेठ विदि 5 दोपहर 4.32 तक 15 दिन तक अक के साथ
- सुरत में लीमडा के उपाश्रय में अंतिम अवस्था में अर्ध पद्मासन मुद्रा में रहकर समाधिपूर्वक कालधर्म को प्राप्त हुए

पूज्य गुरुदेव पन्यासप्रवर श्री अभयसागर जी म.सा.
नवकार साधना गंगा के उदगम स्थान हिमालय स्वरूप परमयोगी आगम विशारद जम्बू द्वीप मन्दिर (पालीताणा) नागेश्वर तीर्थी उद्धारक के प्रेरक पन्यासप्रवर
जीवन परिचय
- केवल साढ़े छह वर्ष की उम्र में जैन दीक्षा का स्वीकार किया
- 13 वर्ष की उम्र में व्याकरण साहित्य और न्याय शास्त्र की उच्च पदवी (डिग्री) प्राप्त की थी
- मात्र 18 वर्ष की उम्र में हजारो श्रोताओं के बीच प्रवचन देते थे
- 45 आगम के प्रखर ज्ञाता और वाचना दाता थे
- साधू सामाचारी विशुद्ध संयम जीवन के स्वामी थे
- अन्य धर्मों तथा दर्शनों का गहराई से अभ्यास किया था
- विश्वभर के वैज्ञानिकों के सामने जिन्होंने चुनौती रखी थी की पृथ्वी गोल नहीं है, पृथ्वी घुमती नहीं और अपोलो विमान चन्द्रमा पर नहीं गया
- पालीताणा जम्बूद्वीप मन्दिर के आदी प्रेरक एवं सर्जक रहे
- नमस्कार महामंत्र के अथंग साधक तो थे ही, साथ ही संशोधन के विश्व में श्री नमस्कार महामंत्र है, इस बात को सचोट रूप से प्रस्तुत करते थे
- जिनके जीवन की अनेक घटनाएँ हमें यह कहने के लिए मजबूर करती है कि वास्तव में वे चमत्कारी पुरुष थे